Grabbing boobs not rape: महिला मंत्री ने high court के फैसले को बताया गलत

Grabbing boobs not rape

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महिलाओं और बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के हालिया फैसले की कड़ी निंदा की है, जिसमें कहा गया कि किसी महिला के स्तन पकड़ना और उसकी पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि इसे महिलाओं को बेइज्जत करने के इरादे से किए गए हमले के रूप में देखा जाना चाहिए।

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इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए अन्नपूर्णा देवी ने इसे “गलत” करार दिया और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले का संज्ञान लेने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के फैसले से समाज में “गलत संदेश” जाएगा।

यह बयान इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा दिए गए उस आदेश के बाद आया है, जिसमें उन्होंने दो आरोपियों को बलात्कार के आरोप से राहत दी थी, जिन्होंने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।

Grabbing boobs not rape: महिला मंत्री ने high court के फैसले को बताया गलत

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अन्नपूर्णा देवी की तरह अन्य महिला नेताओं ने भी इस फैसले पर गहरी नाराजगी जताई और सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की।

तृणमूल कांग्रेस सांसद जून मालिया ने NDTV से कहा, “यह बेहद घृणित है कि हमारे देश में महिलाओं की पूरी तरह से उपेक्षा की जा रही है। इससे हमें जल्द से जल्द उबरने की जरूरत है।”

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आम आदमी पार्टी की सांसद और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस फैसले में जो टिप्पणियां की गई हैं, उन्हें सुनकर मैं बहुत हैरान हूं। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है। उन पुरुषों द्वारा जो कृत्य किया गया, उसे बलात्कार की श्रेणी में क्यों नहीं लिया जा सकता? इस फैसले के पीछे की तर्कशक्ति मुझे समझ नहीं आ रही। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना चाहिए।”

क्या है पूरा मामला?

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यह मामला 10 नवंबर 2021 का है। पीड़िता की शिकायत के अनुसार, वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपनी भाभी के घर से लौट रही थी, जब गांव के तीन युवक – पवन, आकाश और अशोक – उन्हें रास्ते में मिले।

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पवन ने पीड़िता की बेटी को अपनी मोटरसाइकिल पर घर छोड़ने की पेशकश की। महिला ने उस पर भरोसा किया और अपनी बेटी को उसके साथ जाने दिया। लेकिन रास्ते में पवन ने उसे रोक लिया और कथित तौर पर उस पर हमला किया।

पीड़िता की शिकायत के मुताबिक, पवन और आकाश ने उसके स्तन पकड़ लिए, और आकाश ने उसे एक पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। उसने महिला की पायजामे की डोरी भी तोड़ दी। इस दौरान महिला की चीख-पुकार सुनकर दो लोग मौके पर पहुंचे, जिसके बाद आरोपी वहां से भाग निकले। जाते-जाते उन्होंने देसी कट्टा लहराया और धमकी दी।

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पुलिस जांच के बाद निचली अदालत ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन आरोपियों ने इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट का फैसला

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मामले की समीक्षा करते हुए कहा कि आरोपियों की हरकत बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के दायरे में नहीं आती।

“इस मामले में आरोप यह है कि पवन और आकाश ने पीड़िता के स्तन पकड़ लिए, और आकाश ने उसके निचले वस्त्रों की डोरी तोड़ दी और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप के कारण वे भाग गए। यह तथ्य बलात्कार करने के दृढ़ इरादे को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इसके अलावा आरोपियों ने कोई अन्य कृत्य नहीं किया।”

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न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला बलात्कार के प्रयास की कानूनी परिभाषा को पूरा नहीं करता। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि “किसी अपराध को अंजाम देने की तैयारी और उसके वास्तविक प्रयास में मुख्य अंतर अपराध को करने के दृढ़ संकल्प की तीव्रता में होता है।”

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