India Halts Rail Projects
ढाका में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच भारत ने बांग्लादेश में चल रही कई अहम रेलवे परियोजनाओं पर रोक लगा दी है। ये परियोजनाएँ भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश के रास्ते जोड़ने के लिए शुरू की गई थीं। अब भारत इस अस्थिरता और रणनीतिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक मार्गों पर विचार कर रहा है।
यह निर्णय बांग्लादेश में काम कर रहे भारतीय मजदूरों की सुरक्षा और वहां की राजनीतिक अनिश्चितता को देखते हुए लिया गया है। हाल के दिनों में बांग्लादेश में भारत विरोधी स्वर तेज़ हुए हैं, और वहां की मौजूदा अंतरिम सरकार के चीन और पाकिस्तान से करीबी संबंधों की ओर झुकाव ने भारत की चिंताओं को और गहरा कर दिया है।
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इस फैसले से जो परियोजनाएं प्रभावित होंगी, उनमें अगरतला-अखौरा रेल लिंक, खुलना-मोंगला रेल लिंक और ढाका-टोङ्गी-जॉयदेबपुर रेल विस्तार परियोजना प्रमुख हैं। जानकारों के अनुसार इन परियोजनाओं की लागत करीब ₹5,000 करोड़ रुपये है। इसके अलावा, भारत के पांच अन्य नियोजित रेल प्रोजेक्ट भी रोक दिए गए हैं।

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भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट उस समय देखने को मिली जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार, मोहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र पर बयान दिया और चीन को वहां विस्तार करने का आमंत्रण दिया। इसके बाद भारत ने बांग्लादेश को दिए गए ट्रांजिट अधिकार वापस ले लिए और बांग्लादेश ने भारत से यार्न आयात पर रोक लगा दी।
अगरतला-अखौरा रेलवे लिंक
नवंबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए त्रिपुरा के निशिंतपुर और बांग्लादेश के गंगासागर के बीच एक अहम रेल लिंक सहित तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया था। इस परियोजना के पूरा होने पर अगरतला से कोलकाता तक की यात्रा का समय 36 घंटे से घटकर महज 12 घंटे रह जाता, साथ ही ‘चिकन नेक’ यानी सिलीगुड़ी कॉरिडोर से बचकर आवाजाही संभव होती।
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खुलना-मोंगला रेल लिंक
भारत सरकार की रियायती क्रेडिट लाइन के तहत इस परियोजना पर करीब $388.92 मिलियन की लागत आई है। इस परियोजना में मोंगला पोर्ट से खुलना के मौजूदा रेलवे नेटवर्क तक लगभग 65 किमी ब्रॉड-गेज रेल लाइन का निर्माण शामिल है। 2024 में भारत को मोंगला बंदरगाह के एक टर्मिनल के संचालन का अधिकार मिला, जो क्षेत्रीय सहयोग और माल परिवहन के लिहाज से महत्वपूर्ण है।

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ढाका-टोङ्गी-जॉयदेबपुर रेल विस्तार परियोजना
यह परियोजना भारत की मदद से 2027 तक पूरी होनी थी, लेकिन इसमें भारी देरी हो रही है। डिजाइन और टेंडरिंग की जटिलताओं के कारण इसका निर्माण कार्य फरवरी 2019 में शुरू हुआ था और अब तक आधे से भी कम काम पूरा हो सका है। बांग्लादेश ने लागत बढ़ने के कारण इसके लिए अतिरिक्त फंड की मांग भी की थी।
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भारत-बांग्लादेश संबंधों में और गिरावट
भारत बांग्लादेश में रेल परियोजनाओं के जरिए क्षेत्रीय संपर्क मजबूत करने में काफी निवेश कर चुका है, लेकिन मौजूदा हालात के चलते यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत पहले की तरह सहयोग जारी रख पाएगा। चीन और पाकिस्तान के प्रति बांग्लादेश के झुकाव ने इन परियोजनाओं की सफलता पर संशय खड़ा कर दिया है।
हाल ही में बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रमुख मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा के दौरान, बांग्लादेश में रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में चीन के निवेश पर चर्चा हुई। जानकारी के मुताबिक चीन बांग्लादेश में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत सड़क, रेल और बंदरगाहों पर लगभग $4.45 बिलियन के निवेश की योजना बना रहा है।
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भारत के पास क्या हैं विकल्प?
भारत के लिए पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षित और स्थिर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। मौजूदा समय में सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है, के ज़रिए ही पूर्वोत्तर तक रेल और सड़क परिवहन संभव है। यह मार्ग सिर्फ 22 किमी चौड़ा है और रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है। नेपाल और भूटान के रास्ते वैकल्पिक कनेक्टिविटी विकसित करने पर चर्चा हो रही है, लेकिन यहां भी कई व्यावहारिक और राजनीतिक चुनौतियाँ हैं।

हालांकि भारत और बांग्लादेश सरकारों की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन दोनों देशों के अधिकारियों का मानना है कि पिछले कुछ महीनों में द्विपक्षीय सहयोग की रफ्तार धीमी हुई है, जिससे परियोजनाओं को आगे बढ़ाना और मुश्किल हो गया है।
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बांग्लादेश भले ही कह रहा है कि स्थिति स्थिर हो चुकी है, लेकिन मौजूदा हालात ने भारत में विश्वास की कमी पैदा कर दी है। फिलहाल के लिए इन परियोजनाओं पर रोक लगाना ही एकमात्र व्यावहारिक विकल्प नजर आ रहा है।